Wednesday, April 28, 2010

मुकम्मल कहानी

चांद, लहरें, कहानी, नाता, परवरिश, रिश्ते, सिंचाई, पौधा, ग़म, बरस, आजमाइश, बेटा, सबक, बेईमानी, बादल, मरुस्थल, ख़ुदा, मां-बाप। ज़िंदगी इन सब शब्दों से परे क्या होती होगी भला? और देखिए, एक-दूसरे से कितने ख़फा-ख़फा से हैं ये सारे शब्द। कितने जुदा-जुदा हैं, फिर भी एक-दूसरे के बिना शायद कोई वज़ूद नहीं इनका। कितनी उलझन है ना इन्हें समझने में। सबको एक साथ सोचें तो घबराहट सी होने लगती है जेहन में। अज़ीब से जलजले का आभास होने लगता है। फिर भी, यही सब सोचते हुए ज़िंदगी बीतती है। यही सब जीते हुए दिन गुजरता है और इन्हीं को नज़रअंदाज़ करते-करते रात उजली हो जाती है। इन्हीं में सुकून भी है, इन्हीं में तड़प भी। किसे क्या मिलेगा, यह इस पर निर्भर है कि इनमें से किसे वह ज्यादा जीता है और किसे कम। सच में, एक-साथ होकर भी ये ख़ूबसूरत हो सकते हैं। लक्ष्मीशंकर वाजपेयी की यह ग़ज़ल जब पढ़ी थी, तो ऐसा ही कुछ लगा था। हर पंक्ति में नया आभास, नया अहसास। हर शे’र मुकम्मल कहानी। आप भी पढि़ए कई कहानियों से बनी इस एक कहानी को। वाजपेयी जी का आभार जताते हुए इसे अपने ब्लॉग का हिस्सा बना रहा हूं।

न जाने चांद पूनम का ये क्या जादू चलाता है
कि पागल हो रही लहरें, समुंदर कसमसाता है

हमारी हर कहानी में तुम्हारा नाम आता है
ये सबको कैसे समझाएं कि तुमसे कैसा नाता है

जरा सी परवरिश भी चाहिए हर एक रिश्ते को
अगर सींचा नहीं जाए तो पौधा सूख जाता है

ये मेरे ग़म के बीच में किस्सा है बरसों से
मैं उसको आजमाता हूं, वो मुझको आजमाता है

जिसे चींटी से लेकर चांद सूरज सब सिखाया था
वही बेटा बड़ा होकर सबक मुझको सिखाता है

नहीं है बेईमानी गर ये बादल की तो फिर क्या है
मरुस्थल छोड़कर जाने कहां पानी गिराता है

ख़ुदा का खेल ये अब तक नहीं समझे कि वो हमको
बनाकर क्यूं मिटाता है, मिटाकर क्यूं बनाता है

वो बरसों बाद आकर कह गया फिर जल्दी आने को
पता मां-बाप को भी है, वो कितनी जल्दी आता है।

Thursday, April 22, 2010

ज़िंदगी

ज़िंदगी क्या है? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब न जाने किस-किस अंदाज़ में दिया गया है, दिया जाता है। कोई इसे पहेली कहता है तो कई खूबसूरत सफ़र। कोई साइंस की भाषा में जवाब देता है तो किसी का अंदाज़ आध्यात्मिक होता है। किसी को यह ईश्वर का वरदान लगती है तो किसी को दुखों का पिटारा। दरअसल, जिसके जैसे अनुभव होते हैं, ज़िंदगी को देखने का उसका नज़रिया भी वैसा ही होता है। मुझे करीब 11 साल पहले आदरणीय हरभगवान चावला से ज़िंदगी का जो फलसफा सुनने को मिला, उस पर सोचने के बाद कोई वजह नज़र नहीं आई कि उनकी इन पंक्तियों से कोई असहमति जता सकूं। सबसे बड़ी बात तो यह लगी कि सदियों की कहानी को उन्होंने कुछ ही शब्दों में कह दिया था। दो टुकड़े, एक दूसरे से जुड़े हुए, लेकिन दोनों का सफ़र एकदम जुदा। बहुत संभव है कि ज़िंदगी आगे ऐसे अनुभव दे दे कि वह इन शब्दों से भटकी हुई लगे, लेकिन फिलहाल घूम-फिरकर यही फलसफा सामने आ जाता है। आप भी पढ़िए और सोचिए क्या यही नहीं है ज़िंदगी। चावला जी की इन पंक्तियों को एक बार फिर गिरीश ने अपने कैनवास पर उकेरा है। दोनों के हार्दिक आभार के साथ इसे आपके सामने रख रहा हूं।



रफ़्ता-रफ़्ता आंखों में बसती है इक नदी

फिर

कतरा-कतरा

आंखों से

रिसती है

उम्रभर।

Wednesday, April 14, 2010

हम जैसा प्लान करते हैं, सब वैसे नहीं होता

पापा हमेशा कहते थे कि हम जैसा प्लान करते हैं, हमेशा वैसे नहीं होता। तब मैंने बिलकुल नहीं सोचा था कि वे मेरी ही ज़िंदगी की बात कर रहे हैं ... यही वह डायलॉग था जिसे सुनकर शनिवार रात मैं फिर से सोफे पर बैठ गया था। रात का सवा (10-4-10, 1:15am)एक बज चुका था। टीवी देखने और अख़बार पढ़ने के बाद मेरी उनींदी आंखें कह रही थीं कि मुझे अब सो जाना चाहिए, लेकिन फिर इस डायलॉग और इसके बाद की कुछ लाइनों ने मेरी नींद उड़ा दी। स्टार मूवीज चैनल पर किसी फिल्म की नंबरिंग चल रही थी। डायलॉग सुनकर जाहिर हुआ कि फिल्म अभी शुरू हुई है। खूबसूरत एक्ट्रेस सैंड्रा बुलक का मासूम सा चेहरा, बैकग्राउंड में उसकी सलिलक्वि, अपने आप से बातें, एक नौजवान को देख पहली ही नज़र में उससे प्यार कर बैठने का इकरार, उस सीन में बहुत कुछ ऐसा था कि मैंने तुरंत पूरी फिल्म देखने का फैसला किया। वाकई, डेनियल जी. सलिवन और फ्रैडरिक लीबॉ की लिखी इस रोमैंटिक कॉमेडी और जॉन टर्टटेलटॉ के शानदार निर्देशन के चलते फिल्म ऐसी बनी थी कि हर सीन के बाद दूसरे सीन का इंतजार कर रहा था। पर, जिस चीज का सबसे ज्यादा इंतज़ार था, वह था यह देखना कि कैसे सच में जैसा हम प्लान करते हैं, सब वैसा नहीं होता। और फिर जो कुछ देखा, ऐसा था कि तुरंत तय कर लिया कि इस कहानी को अपने पास कैद करके रखूंगा। लूसी (सैंड्रा) की मूवी "वाइल यू वर स्लीपिंग" की कहानी अपने ब्लॉग पर कैद करने की इस कोशिश को आपसे शेयर कर रहा हूं :



लूसी। एक सुंदर, मासूम सी दिखने वाली खूबसूरत लड़की। कहानी की शुरुआत में अपने बारे में बता रही है। वह बताती है कि कैसे बेहद छोटी उम्र में उसकी मां उसे छोड़कर चली गई और फिर कैसे उसके पापा ने उसकी परवरिश की। वह बताती है कि कैसे उसके पापा उसे कंधे पर बिठाकर अद्भुत कहानियां सुनाया करते थे। वे अक्सर उससे कहते थे कि जैसा हम सोचते हैं, प्लान करते हैं, सब कुछ वैसे नहीं होता। ज़िंदगी कब कहां नया मोड़ ले ले, हम नहीं जानते। एक दिन लूसी के पापा भी दुनिया छोड़ देते हैं। अब लूसी अकेली है। अपने सपनों की दुनिया में खुश लूसी की ज़िंदगी में इन सपनों के अलावा एक प्यारी सी बिल्ली है और उसके लैंडलॉर्ड का मोटा सा भोंदू लड़का जो फस्को। जो लोगों से कहता फिरता है कि वह लूसी का फियांसे है। उसकी ऊलजलूल हरकतों के बावजूद कभी कभार लूसी उसकी किसी इमोशनल बात पर उसे गले लगा लेती है, लेकिन जब-जब वह ऐसा करती है, वह बेवकूफ कोई गंदी हरकत या कमेंट कर डालता है। लूसी मेट्रो की टिकट विंडो पर जॉब करने लगती है। जैसे-जैसे जिंदगी आगे बढ़ती है, लूसी का अकेलापन भी बढ़ता जाता है। एक दिन लूसी की तन्हाइयों के रेगिस्तान में एक फूल खिलता है। एक हैंडसम, अट्रैक्टिव नौजवान पीटर। पीटर लॉ स्टूडेंट है और रोज ट्रेन पकडऩे के लिए मेट्रो स्टेशन आता है। टिकट लेते वक्त लूसी को देखे बगैर वह आगे बढ़ जाता है, उसे देखते ही लूसी की धड़कनें तेज हो जाती हैं। पहली नजर में ही वह उससे प्यार करने लगती है। बेशक, पीटर ने कभी लूसी की तरफ नजरें तक नहीं उठाईं हैं, लेकिन लूसी उसे अपने सपनों का राजकुमार मानने लगी है। वह खुद से कहती है - हां, यही है मेरे सपनों का राजकुमार, माई प्रिंस। अपनी बाकी ज़िंदगी मैं इसके साथ गुजारने के लिए तैयार हूं। मैं इससे शादी करूंगी। सपनों की दुनिया में डूबी लूसी रोज उसके आने का इंतजार करती है। उसे देखते ही उसके चेहरे पर दिलकश मुस्कान तैर जाती है। उसकी आंखों में ख़्वाब तैरने लगते हैं, मगर पीटर उसकी मुस्कान का जवाब मुस्कान से देकर रोज अपनी ट्रेन में सवार हो जाता है।
क्रिसमस
हल्के-हल्के स्नोफॉल के बीच लूसी अपने कमरे में रखा बड़ा-सा क्रिसमस ट्री सजाती है, तो पीटर का चेहरा उसके जेहन में तैर जाता है। जॉब के दौरान पीटर आता दिखाई देता है, तो वह उसे देखते-देखते इतना खो जाती है कि पीटर के मेरी क्रिसमस कहने पर भी कोई जवाब नहीं देती। जैसे ही पीटर मुड़ता है, वह माथा पीट लेती है कि आज तो उससे बात करने का बहाना मिला था। वह खुद से बातें कर ही रही होती है कि अचानक देखती है कि प्लैटफॉर्म पर पीटर से दो युवक पर्स छीनने की कोशिश कर रहे हैं। छीनाझपटी में पीटर रेल की पटरी पर गिर जाता है। लूसी उसकी तरफ दौड़ती है और देखती है कि पीटर ट्रैक के बीचो-बीच बेसुध पड़ा है। उसे उठाने के लिए वह खुद ट्रैक पर छलांग लगा देती है। तभी उसे सामने से ट्रेन आती दिखती है। ट्रेन जब बिलकुल नजदीक पहुंच जाती है तो वह पीटर और खुद को पटरी से हटाने में कामयाब हो जाती है। लूसी जानती है कि वह पीटर को बेइंतहा प्यार करती है, इसी लिए उसने अपनी जान को खतरे में डाला। पीटर को अस्पताल पहुंचाने के बाद जब नर्स उसे पीटर के पास जाने से रोकती है तो वह उसे बताती है कि वह पीटर से शादी करने वाली है। नर्स उसे जाने देती है। लूसी पीटर के पास बैठी उसे निहार ही रही होती है कि अचानक पीटर की फैमिली वहां आ जाती है। तब नर्स उन्हें बताती है कि पीटर की फियांसे लूसी ने उसकी जान बचाई। फियांसे! सब चौंक जाते हैं। पीटर ने तो कभी बताया नहीं। वे लूसी का धन्यवाद करते हैं। लूसी बहुत अजीब महसूस कर रही है। लूसी से मिलकर पूरा परिवार खुश है। सब उसे बेहद प्यार देते हैं। पीटर की मां ने बहुत सपने संजोए हैं पीटर की शादी को लेकर। पीटर की दादी तो इतनी खुश है कि एकबारगी जब लूसी कहती है कि वह पीटर की फियांसे नहीं है, तो दादी को हार्ट अटैक आ जाता है। पीटर की फैमिली की खुशियां देख लूसी इमोशनल हो जाती है और उन्हें ज्यादा कुछ ना कहकर घर आ जाती है।
सोल सब सुन लेता है
आधी रात को लूसी फिर पीटर के पास जाती है और उसके पास बैठकर अपने मन की सारी बातें बोल डालती हैं। पीटर कोमा में है। कुछ सुन नहीं सकता। बोलते-बोलते लूसी वहीं सो जाती है और जब सुबह उसकी आंख खुलती है तो पीटर की फैमिली को सामने पाती है। सब हैरान और खुश हैं कि लूसी सारी रात पीटर की देखभाल करती रही। बस एक शख्स है जो सचाई जानता है। पीटर का गॉडफादर सोल (करीब 70 की उम्र) जिसने चुपचाप लूसी की बातें सुन ली हैं। बाहर निकलते ही वह लूसी को रोक लेता है और बताता है कि उसके सपने भी पूरे हो जाएंगे और पीटर की फैमिली का दिल भी नहीं टूटेगा, इसलिए वह किसी को यह न कहे कि वह पीटर की फियांसे नहीं है। लूसी इन हालात में इतनी घिर जाती है कि समझ ही नहीं पाती कि क्या करे। एक तरफ उसके सपने पूरे होने जा रहे हैं तो दूसरी तरफ यह डर है कि पीटर जब कोमा से जागेगा तो क्या होगा।
जैक की एंट्री
पीटर की फैमिली क्रिसमस सेलिब्रेशन के लिए जब लूसी को अपने घर बुलाती है तो लाख मना करने के बावजूद लूसी उनकी जिद से बच नहीं पाती। सब खुश हैं। फैमिली फोटोग्राफ खिंचवाते वक्त लूसी हिचकिचाती है, लेकिन आखिर सबकी खुशी के आगे वह फोटो खिंचवाने के लिए भी हामी भर देती है। जब सब सो जाते हैं तो अचानक जैक घर आ जाता है। जैक पीटर का छोटा भाई है। हैंडसम, डैशिंग पर्सनैलिटी। घर में लूसी को सोते देख वह चौंकता है। पूछता है, ये कौन है। जवाब मिलता है, पीटर की फियांसे। वट! पीटर की फियांसे और मैं नहीं जानता! ऐसा कैसे हो सकता है? उसकी छोटी बहन उसे दूसरे कमरे में ले जाती है। सुबह जब लूसी की आंख खुलती हैं तो वह चुपके से घर से निकलना चाहती है। लूसी... एक कर्कश आवाज से लूसी के कदम थम जाते हैं। मुडक़र देखती है तो सीढिय़ों पर जैक दिखता है। मैं जैक- खुद को इंट्रोड्यूस कराते हुए जैक कहता है। मैं लूसी हूं- दबी हुई मुस्कान के साथ लूसी जवाब देती है। अगला सवाल वही होता है जिसकी उम्मीद लूसी ने की होती है। तुम पीटर से कब एंगेज हुई? जवाब लूसी टाल देती है और वहां से चली जाती है।
लूसी का अफेयर
लूसी की खूबसूरती के चलते जैक भी उसके प्रति खिंचाव महसूस करने लगता है। यह पता करने के लिए कि आखिर लूसी कौन है, ढूंढता हुआ वह उसके अपार्टमेंट तक पहुंच जाता है। जो फस्को कार ठीक कर रहा होता है और जैक उसी से पूछ लेता है। जो उसे भी कहता है कि लूसी मेरी फियांसे है। जैक चौंकता है और लूसी के पास जाता है। जब वह जो की बात बताता है तो लूसी उस पर यकीन करने के लिए जैक पर हंसती है। इसके बाद उनकी बातचीत का सिलसिला शुरू हो जाता है। जब भी लूसी पीटर के घर या अस्पताल जाती है, जैक उसे अकेला ना जाने देने की बात कहकर उसे घर छोड़ने चला आता है। रास्ते में उनकी जो बातें होती हैं, उससे जैक लूसी से प्यार करने लगता है। हालांकि पीटर के ख़्याल से वह उसे कुछ नहीं कहता। स्नोफॉल की एक रात जब जैक लूसी को छोड़ने आता है तो फिसलन के कारण दो-तीन बार दोनों फिसलते हैं और एक दूसरे की बांहों में आ जाते हैं। उनकी नजरें मिलती हैं तो लूसी के चेहरे पर भी अजीब सी दिलकशी दिखती है। खिड़की में खड़े होकर जैक को जाता देख वह खुद से कहती है - क्या मैं सच में पीटर से प्यार करती हूं, मैं तो जैक के साथ अपनी हंसी बांटना चाहती हूं। तब उसे अहसास होता है कि वह जैक से प्यार करने लगी है।
पीटर को होश आ जाता है
अगली सुबह लूसी अपने एक बूढ़े दोस्त जैरी, जिससे वह हर बात में मशवरा लेती है, को बताती है कि उसका जैक के साथ अफेयर चल रहा है तो वह कंफ्यूज हो जाता है। लूसी... तुम पीटर को चाहती हो, उसकी फैमिली को, या जैक को ... माजरा क्या है... मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं। लूसी मुंह बनाते हुए वहां से आ जाती है। असल में लूसी खुद नहीं समझ पा रही कि ये सब हो क्या रहा है। एक दिन जैक लूसी से कहता है- पता है लूसी, तुम पीटर के टाइप की लडक़ी नहीं हो। लूसी उस पर गुस्सा हो जाती है। वह नहीं जानती कि क्यों वह ऐसा कर रही है, लेकिन वह जैक को बताती है कि पीटर को ही वह चाहती है, उसके होते हुए किसी के बारे में नहीं सोचना चाहती। हालांकि अंदर ही अंदर वह परेशान भी है। तभी उसकी परेशानी बढ़ जाती है। पीटर को होश आ जाता है। पीटर की फैमिली लूसी को तुरंत पीटर के पास बुलाती है। होता भी वही है। पीटर लूसी को पहचानने से ही इंकार कर देता है। वह बाक़ी सब को पहचान रहा है। इसके बावजूद पीटर के घरवाले लूसी और पीटर के बारे में इतने सपने बुन चुके हैं कि मान लेते हैं कि पीटर को भूलने की बीमारी हो गई है। लूसी को एक दिन का वक्त मिल जाता है। पीटर का गॉडफादर सोल लूसी से अकेले में बात करता है। सोल कहता है कि वह पीटर से बात करेगा। उसे समझाएगा। वह पीटर के पास जाता है और उससे कहता है कि लूसी जैसी लडक़ी उसे कभी नहीं मिलेगी, इसलिए वह उससे शादी कर ले। वह उसे बताता है कि लूसी इतनी अच्छी लड़की है कि 3 सेकंड भी वह उसकी आंखों में देख ले तो खुद उससे शादी करना चाहेगा। उसका एक डायलॉग है : लूसी आज से 40 साल पहले आई होती तो मैं हर कीमत पर उससे शादी कर लेता।
पीटर और लूसी की बातचीत
पीटर को सोता देख लूसी उसके पास कुछ देखने आती है। तभी पीटर जाग जाता है। हाए - पीटर बोलता है। शरमाते हुए लूसी जवाब देती है। बातचीत शुरू होती है तो पीटर सच में उससे इतना इंप्रेस हो जाता है कि उसी वक्त उसके सामने शादी का प्रस्ताव रख देता है। लूसी हैरान है। ये क्या हो रहा है। मेरे सपने पूरे हो गए हैं फिर भी मैं खुश क्यों नहीं हूं? घर लौटकर वह सोल से बात करती है, लेकिन सोल ख़ुद समझ नहीं पा रहा कि वह उसे क्या सलाह दे। वह फिर जैक से बात कर ख़ुद को कंफर्म करना चाहती है और बातों-बातों में उससे पूछती है - जैक, क्या तुम्हारे पास कोई एक भी वजह है जिससे तुम कह सको कि मुझे पीटर से शादी नहीं करनी चाहिए? इमोशनल जैक सिर्फ ‘नहीं’ कह पता है।
एक दिन अचानक लूसी अपनी शादी का कार्ड देने सोल के पास आती है। कार्ड रखकर वह चलने लगती है, तभी सोल उससे पूछता है कि किसकी शादी का कार्ड है? लूसी जवाब देती है- मेरी और पीटर की शादी का। सोल चौंक जाता है और उससे कहता है कि यह वह क्या करने जा रही है। लूसी फट पड़ती है। वह उससे कहती है कि उसने उसे कोई ऐसी सलाह दी भी तो नहीं कि वह पीटर से शादी न करे।
शादी का दिन
चर्च में पीटर की फैमिली मौजूद है। पीटर के पीछे ही जैक खड़ा है। पादरी भी तैयार है, मगर लूसी अब तक नहीं आई है। सब उसका इंतज़ार कर रहे हैं। अचानक लूसी हाथों में बुके लेकर वहां आती है। धीरे-धीरे वह पीटर की तरफ बढ़ती है। जैक और लूसी की भी नज़रें मिलती हैं, मगर लूसी उससे नज़रें बचा लेती है। पादरी लूसी से पूछता है - क्या तुम्हें पीटर से शादी से कोई एतराज है? लूसी बड़ी सहजता से कहती है- हां। सब चौंक जाते हैं। पादरी तेज आवाज़ में बोलता है- यह तुम क्या कह रही हो! तभी जैक के मुंह से निकलता है- आई ऑब्जेक्ट। अब लूसी पीटर की फैमिली से मुखातिब है। वह सब कुछ सच-सच बोल देती है। कैसे वह पीटर को देखते ही उससे प्यार करने लगी। उससे शादी के सपने संजोने लगी। वह ट्रेन हादसा। फिर नर्स के उसे पीटर की फियांसे बताने से पैदा हुई गलतफ़हमी। वह जैक का आना। धीरे-धीरे जैक का उसे पसंद करते चले जाना। लूसी कहती है कि वह जैक से शादी करना चाहती है। सब हैरान हैं। इमोशनल होकर जैक उससे कहता है - पहले बताया क्यों नहीं। लूसी वहां से चली आती है।
अगले दिन हैरान परेशान लूसी अपनी जॉब पर है। टिकट विंडो से एक-एक कर सिक्के आते हैं और वह बिना किसी यात्री को देखे टोकन देती रहती है। तभी सिक्के की जगह एक अंगूठी अंदर सरकती है। लूसी चौंकती है। बाहर जैक और उसकी फैमिली खड़ी है। जैक और लूसी की नजरें मिलती हैं। जैक पूछता है- क्या मैं अंदर आ सकता हूं। लूसी कहती है- नहीं। सब फिर चौंक जाते हैं। तभी लूसी कहती है- बिना टोकन लिए तुम्हें अंदर कैसे आने दूं? सबके चेहरे पर मुस्कान तैर जाती है। जैक अंदर आता है और लूसी को प्रपोज करता है। दोनों एक दूसरे से प्यार का इजहार करते हैं। लास्ट सीन में लूसी और जैक हनीमून के लिए टे्रन में सवार हैं और बैकग्राउंड में लूसी की आवाज़ है - पापा, सच ही कहते थे। सब कुछ हमारे प्लान के मुताबिक नहीं होता।

Saturday, April 10, 2010

फूल जब खि‍ल के बहक जाता है

गुलाब की कली को फूल बनते आपने भी देखा होगा। फिर उसे खू़ब खिलते हुए भी देखा होगा। क्या कभी गौर कि‍या कि‍ जब वह सबसे ज्यादा खिला हुआ होता है, तब उसकी पंखुड़ि‍यां सबसे ज्यादा नाज़ुक होती हैं। कई बार तो हाथ लगाते ही झड़ जाती हैं। कई बार अपने आप भी। कुछ रिश्ते ऐसे ही होते हैं। मेरे सबसे पसंदीदा शायरों में से एक निदा फाज़ली की एक नज़्म है जिसमें उन्होंने इस बात को बेहद खूबसूरत और सटीक अंदाज़ में कहा है। जब पहली बार यह नज़्म पढ़ी थी, तो इससे इतना जुड़ाव हो गया कि‍ कई साल से यह मेरे मोबाइल में सेव है। आसान भाषा और साफगोई से जटिल से जटिल, गहरी से गहरी बात साफ-साफ कहने का निदा का स्टाइल मुझे उनका कायल कर गया। उन्हें जितना पढ़ा, उतना ही यह खिंचाव बढ़ता चला गया। शायद इसलिए लग भी रहा है कि‍ आगे भी उनकी रचनाओं को ब्लॉग पर डालने से ख़ुद को नहीं रोक सकूंगा। फिलहाल यह नज़्म आपकी नज़र कर रहा हूं। मुझे लगता है यह जीवन की वह सचाई है जिसे देखते और महसूस तो आप भी करते होंगे, लेकि‍न इस तरह से कह नहीं पाते होंगे।


यूं तो हर रिश्ते का अंजाम यही होता है
फूल खि‍लता है
महकता है
बि‍खर जाता है।
तुमसे वैसे तो नहीं कोई शि‍कायत
लेकि‍न,
शाख़ हो सब्ज़
तो नाज़ुक फ़िज़ां होती है,
तुमने बेकार ही मौसम को सताया वरना,
फूल जब खि‍ल के बहक जाता है,
ख़ुद-ब-ख़ुद शाख़ से गि‍र जाता है।

Sunday, April 4, 2010

तुम बिन

उतार-चढ़ाव और धूप-छांव से भरी ज़िदगी में कभी-कभी ऐसे पलों से सामना हो जाता है, जिनके बीतने का इंतज़ार पहाड़ से भी भारी लगने लगता है। कुछ लम्हे अपने पांव पर पत्थर बांध कर आते हैं। इनके बोझ से हमारे कंधे झुक जाते हैं। इनकी सख्ती से हमारा अंतर्मन छिल जाता है। इनका रुके रहना हर पल सताता है। हर घड़ी इनका आकार पहले से ज्यादा बड़ा नज़र आता है। आदरणीय हरभगवान चावला की लिखीं कुछ पंक्तियां इस दर्द की जो तस्वीर पेश करती हैं, वह दस साल से मेरे जेहन में चस्पां है। जितने आसान शब्दों में उन्होंने अपनी बात कही, उससे कहीं ज्यादा मुश्किल लगता है उन पलों को जी पाना। उनकी ये पंक्तियां आपकी नज़र कर रहा हूं। शायद आप इस अहसास से पहले से वाकि‍फ होंगे।







मैं चाकू से पहाड़ काटता रहा

मैं अंजुरियों से समुद्र नापता रहा

मैं कंधों पर ढोता रहा आसमान

मैं हथेलियों से ठेलता रहा रेगिस्तान

यूं बीते

ये दिन

तुम बिन।