Monday, December 16, 2013

बात मत टालो



गड्डमड्ड है। सही है कि गलत, पता नहीं, मगर है तो सही। एक ही पल में शीतल और उसी पल में सिहरन पैदा करने वाला। मुस्कुराहट को नौंचती उदासी को क्या कहना चाहोगे?

मुस्कुराहट देखनी है तो देख लो, दिख जाएगी। मगर कुछ और मत पूछना। इस मुस्कुराहट की कोई किस्म नहीं होती। होती भी होगी तो अभी पता नहीं। पहली बार कोई मिले तो उसे पहचानने में वक्त तो लगता ही है। हां, बस इतना पता चला है कि है ये मुस्कुराहट ही।

नहीं, वो उदासी वुदासी कुछ नहीं, ऐसे ही गलती से लिखा गया। लिखा गया तो क्या जरूरी है कि मिटाया जाए। मिटाना कभी कभी अपने हाथ में होता भी नहीं। और कभी होता है तो भी जरूरी तो नहीं मिटाने का भी मूड हो। मिटनी होगी तो अपने आप मिट जाएगी।

देखो कुछ चीजें समझना आसान नहीं होता और कुछ को समझाना। कुछ चाहकर भी समझ नहीं आतीं और और कुछ चाहकर भी समझना नहीं चाहते। इसी लिए तो कहते हैं गड्डमड्ड। ये ऐसा शब्द है जिसे अपने अपने तरीके से समझा जा सकता है। ये व्याकरण से बाहर है। सबका अपना अपना है, और किसी का अपना नहीं।

चलो कुछ और बात करो। उन फूलों की बात करो जो घर के बगीचे में अभी नए खिले हैं। नागफनी के उन कांटों की नहीं, जो थे तो उसी बाग में मगर पहले कभी नजर नहीं आए। फूल को देखोगे तो बगीचा आंखों को सुहाएगा। नागफनी कभी सुहाती है क्या!

सुहाए न सुहाए, होती तो है ना।

तुमने वो नई प्रेम कहानियां पढ़ीं जो अभी अभी बाजार में नई आई हैं? 'तमन्ना तुम अब कहां हो'। नहीं पढ़ीं! पढ़ने का मन नहीं, कहकर बात मत टालो। कभी कभी पढ़कर मन बदल जाता है। हां हां, ठीक है, प्रेम कहानियों में भी अंत दुखद होते हैं, पर तुम पूरी मत पढ़ो। जब अंत होने लगे तो पढ़ना छोड़ दो।

सुनो, एक बात कहूं, नाराज तो नहीं होओगे?

ये सोचने की प्रैक्टिस करो कि सब ठीक हो जाएगा। ये बड़ी मजेदार प्रैक्टिस होती है। होना वोना कुछ हो न हो, लगने लगता है कि हो जाएगा।

बाए! टेक केअर।