Monday, May 16, 2011

साहि‍ल कि‍धर गए?

12 मार्च 2010 को बस में एफएम सुनते हुए एक ग़ज़ल सुनी थी। बहुत प्यारी लगी थी। तब एक कागज़ के टुकड़े पर नोट कर ली थी। आज एक डायरी खोली तो उसमें यह दि‍खी। टाइम मि‍ल गया था इसे ब्लॉग पर डालने का, तो बि‍ना कि‍सी भूमि‍का के इसे पोस्ट कर रहा हूं। उलझनों, शि‍कायतों और ऐसे ही दूसरे अहसासों के लबरेज इस ग़ज़ल को पढ़कर आपको भी अच्छा लगेगा। इसे कि‍सने लि‍खा, काफी कोशि‍श के बाद भी पता नहीं चल सका। आप में से कि‍सी को इसकी जानकारी मि‍ले तो प्लीज मुझे बताएं।

जब वो मेरे करीब से हंसकर गुज़र गए
कुछ ख़ास दोस्तों के भी चेहरे उतर गए

अफसोस डूबने की तमन्ना ही रह गई
तूफान ज़िंदगी में जो आए गुज़र गए

हालांकि‍ उनको देख कर पलटी ही थी नज़र
महसूस ये हुआ के जमाने गुज़र गए

कोई हमें बताए कि‍ हम क्‍या जवाब दें
मंज़र ये पूछते हैं कि‍ साहि‍ल कि‍धर गए।