Saturday, June 15, 2013

दीवार से लटकती बेल

कभी वो बेल देखी है जो जिसका तना मजबूत नहीं होता। वो जो ऊपर बढ़ती है तो अपने ही पत्तों के बोझ से झुक जाती है। फिर उसमें से तार जैसे महीन धागे से निकलने लगते हैं और वो जिससे भी टच होते हैं, उसे के चारों और घूम जाते हैं। फिर बेल उसके सहारे ऊपर उठती है। फिर अपने ही पत्तों के बोझ से झुकती है तो उसमें से निकला वो तार जैसा धागा फिर अपने आसपास किसी और चीज से लिपट जाता है। फिर देखते ही देखते वह बेल अपने आप ऊपर की और बढ़ती जाती है और एक दिन भरी पूरी हो जाती है। अपनी हरियाली से पूरी दीवार को ढंक लेती है और उसकी वजह से उसके आसपास का सब कुछ हरा भरा, सुंदर सुंदर सा लगने लगता है।

दीवार से लटकती ऐसी बेलें सबने देखी होगी। पर ऐसी ही कुछ बेलें हमारे बीच में भी पलती हैं, जो अक्सर हम देखते हैं पर उन पर गौर नहीं करते। मैंने ऐसी बेलें बहुत करीब से देखी हैं। मुझे उनका अपने आसपास किसी न किसी से लिपट कर ऊपर बढ़ते जाना बहुत सुहाता है। आज सुबह अखबार में पूजा प्रसाद का आर्टिकल पढ़ा। पूजा ने ऐसी ही तीन बेलों का जिक्र किया था। कुछ ही देर में लगा कि अखबार से कुछ तार जैसे धागे निकल कर मेरे चारों और लिपट रहे हैं। फिर जेहन में कई सारी बेलें आ गईं और उनके तार जैसे धागे भी। जैसे तैसे उन धागों से निकलकर ऑफिस के लिए चल दिया। रास्ते भर सोचता रहा, क्या कोई बेल ऐसे ऊपर बढऩे पर खुश होती होगी या उसे यह पछतावा होता होगा कि मेरा तना इतना मजबूत क्यों नहीं कि मैं बिना किसी से लिपटे ऊपर बढ़ सकूं।

पता है, कुछ बेलें ऐसी भी होती हैं जो अपने मजबूत तनों की कद्र नहीं करतीं। जब वे ऊपर बढ़ जाती हैं तो उन्हें लगता है उसके ऊपर बढऩे में उसके तने का कोई रोल नहीं। उसका तना बेकार है। उसे अपनी हरियाली दिखती है बस। ऐसी बेलें अगर मजबूत तना नहीं होने के कारण तार जैसे धागों के सहारे ऊपर बढ़ती बेलों को देखें तो उन्हें पता चले कि उनका तना ही है जिसकी वजह से वे आसानी से ऊपर बढ़ी हैं। मैं उस आर्टिकल को एज इट ईज ब्लॉग पर डाल रहा हूं।

भगवान करे बिना मजबूत तने की बेलें ऐसे ही ऊपर बढ़ती रहें।

और मजबूत तने वाली बेलें अपने तने का शुक्रिया अदा करना सीखें।



एक है विनय। बेहद कम हंसता है। हंसी आए भी तो माथे पर शिकन लाकर हंसी को दबा लेता है। हंसना बच्चा होने की निशानी है, ऐसा लगता है उसे।
एक है मृणाल। हर समय अपनी देहयष्टि और रूप-रंग को लेकर परेशान और सतर्क रहती है। कहती है, अपने लिए लड़का खुद ही ढूंढना है उसे। इसलिए, आम लड़कियों से 'ज्यादा एलीजिबल' होना चाहिए उसे।
एक है गौरव। उसकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है। वह किसी हमउम्र से नजदीकी बढ़ने पर खुद को जल्द ही उससे दूर कर लेता है। कहता है, उसके ऐज ग्रुप की लड़कियां मेंटली और इमोशनली बहुत ही 'बच्ची' होती हैं। उसे कोफ्त होती है।
तीनों की उम्र 19 से 23 के बीच है। तीनों पढ़ रहे हैं। दिल्ली में रहते हैं। मिडल क्लास फैमिली से हैं। इन तीनों में एक और समानता है- पिता के हाथ का अहसास इनकी हथेलियों से काफी पहले गुम हो गया था। बचपन में ही तीनों अपने-अपने पिता खो चुके हैं। इत्तेफाक से, पिछले दो महीने में मैं इन तीनों के अलावा भी कुछ ऐसे लोगों के संपर्क में आई जिनके पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं।
बड़ा होना इतना भी बड़ा नहीं कि उम्र से पहले ही बड़ा हो लिया जाए। ऐसा सा ही कुछ मैं विनय को कहती। लेकिन कुछ अजीब सा छाती पर अटा सा पड़ा रहता है उसके। वह बोलने-चालने में निपुण है और उसके व्यवहार से उसके जहनोदिल पर बिछी उस मोटी परत का अंदाजा नहीं लगता जिसे वयस्कता कहते हैं। एक अजीब सा अपराध बोध उसे महसूस होता है यदि वह रिलैक्स रहता है। उसे लगता है कि उसे और जिम्मेदार होना चाहिए। वह परिवार से संबंधित कई जिम्मेदारियां उठाता है। घर बाहर के कई काम करता है। सोसायटी का लोकप्रिय 'बेटा' है। कई आंटियों की जब-तब मदद करता है। लेकिन, सबका राजा बेटा विनय खुद की एक्सपेक्टेशन्स पर खरा नहीं उतर पाता। सच तो यह है (जैसा कि उसने खुद कहा भी) कि वह अपने भीतर अपने पिता को देखना चाहता है। वह अपने व्यवहार में अपने पिता सा होना चाहता है। परिवार में खुद को पिता के रूप में देखने के लिए वह ऐसी असंभव जद्दोजहद कर रहा है जो उसे कतई नहीं करनी चाहिए। आखिर वह एक अलग शख्सियत है। लेकिन, जिंदगी 'चाहिए' पर नहीं चलती। उम्मीदें 'चाहिए' के आधार पर नहीं जन्म लेतीं।
मैं छोटी थी, तब अक्सर सुनती थी, फलां के पिता नहीं हैं न, इसलिए वह बड़ा ही बदमाश किस्म का है... पढ़ने-लिखने में फिसड्डी है... मां की सुनता नहीं है... उद्दंड है...। लेकिन, देख रही हूं कि पिता जब कोमल उंगलियों को परिपक्व होने से पहले ही झटक कर चले जाते हैं, तब वे कोमल उंगलियां वक्त से पहले ही प्रौढ़ हो जाती हैं। बीच के कुछ साल, जैसे, जिंदगी से गायब हो जाते हैं। इन गायब दिनों को भर पाना संभव है क्या? कैसे? कल के दिन मुझे विनय,मृणाल और गौरव बहुत याद आएंगे। कल फादर्स डे है न।... और मैं कल के दिन अपने पिता से लिपट कर बस रोना चाहती हूं।

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