Friday, February 8, 2013

मेरा सफर


मेरे कुछ और शे'र। अक्टूबर और नवंबर 11 के दरम्यान अक्सर घर जाते वक्त कैब में लिखे। अलग-अलग दिन अलग-अलग मिजाज की अपनी उस तस्वीर को आज भी इन शे'रों में साफ देख लेता हूं। हालांकि बदलते वक्त में अपनी ही तस्वीर अक्सर पराई लगने लगती है। फिर भी.... खैर... कुछ शेर आपसे शेयर करता हूं...


तेरे सफर से जुदा है सफर मेरा
तुझे थकने का इंतजार, मुझे चलने की जुस्तजू।

23 अक्टूबर-11

मंजिलें चूमेंगी कदम, रास्ते मुसकाएंगे
राहों को तन्हा न रखना, फासले मिट जाएंगे।

23 अक्टूबर-11

मुस्कुराहटों का दामन थामे रखना
राह में दुश्वारियां हैं बहुत

29 अक्टूबर-11

तेरी छुअन से महके थे जो फूल, सूख भी गए तो क्या
मेरे ख्यालों से तेरी खुश्बू कभी मिट ना पाएगी।

30 अक्टूबर-11

जिंदगी की फिक्रें बड़ी बेरहम होती हैं,
बचपन को मसल देती हैं किसी फूल की तरह।

2 नवंबर-11

उनकी इस अदा का कोई इल्म नहीं था
देखा इक नजर और सब लूट ले गए

2 नवंबर-11

बदलना मौसम का मिजाज है, हवाओं की शरारत नहीं
ये तो खुशबुओं की सौदागर हैं, कभी इधर की कभी उधर की

3 नवंबर-11

1 comment:

Anonymous said...

bhai kaya boloo...
samanjh nahi aa raha..