भले ही अब हम ऑफिस जाने लगे हैं
पर आज भी
बस या ट्रेन में चढ़ते ही खिड़की वाली सीट कब्जाना,
ऑफिस से निकलते वक़्त सर्द रातों में मुंह से धुआं उड़ाना,
गाड़ियों पर जमी ओस पर उंगली से अपना नाम लिखना,
आसमान के फ्रेम में बादलों से अलग-अलग तस्वीरें बनाना,
अब भी कभी-कभी चॉकलेट के लिए मचलकर मम्मी पापा से जिद करना,
कोई तो है जो हमसे ये करवाता है,
जो तन्हाई में भी हमें गुदगुदाता है,
अकेलेपन में चेहरे पर मुस्कराहट लाता है,
दिल में बैठा वो बच्चा हमसे आज भी नादान शरारतें करवाता है,
और
इस समझदार दुनिया में मासूमियत को खोने नहीं देता
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