Saturday, October 27, 2012

भले ही अब हम ऑफिस जाने लगे हैं


बातों बातों में कितनी खूबसूरत बातें सामने आ जाती हैं, पहले से पता नहीं होता। कुछ देर काम से खाली हुआ तभी फेसबुक पर गुंजन जैन ने पिंग किया। गुंजन ने आईआईएमसी से जर्नलिज्म किया है और एनबीटी में काम कर रही हैं। इधर-उधर की बात से घूमते-घुमाते उसने बताया कि उसे लिखना भी अच्छा लगता है, मगर दिल से। मैंने कहा कुछ सुनाओ तो उसने अपनी दो तीन रचनाएं लिख दीं। वाकई बेहद खूबसूरत अंदाज है। मैंने गुंजन से पूछा इनमें से एक ले लूं? तो उसने कहा, ले लो। तो आप भी पढि़ए और बताइए कैसी लगी।

भले ही अब हम ऑफिस जाने लगे हैं
पर आज भी
बस या ट्रेन में चढ़ते ही खिड़की वाली सीट कब्जाना,
ऑफिस से निकलते वक़्त सर्द रातों में मुंह से धुआं उड़ाना,
गाड़ियों पर जमी ओस पर उंगली से अपना नाम लिखना,
आसमान के फ्रेम में बादलों से अलग-अलग तस्वीरें बनाना,
अब भी कभी-कभी चॉकलेट के लिए मचलकर मम्मी पापा से जिद करना,
कोई तो है जो हमसे ये करवाता है,
जो तन्हाई में भी हमें गुदगुदाता है,
अकेलेपन में चेहरे पर मुस्कराहट लाता है,
दिल में बैठा वो बच्चा हमसे आज भी नादान शरारतें करवाता है,
और
इस समझदार दुनिया में मासूमियत को खोने नहीं देता

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