बशीर बद्र की एक खूबसूरत गजल कई दिन से ड्राफ्ट में रखी थी। इसके कई शेर ऐसे हैं जिन्होंने बशीर को एक तरह से अमर कर दिया। बच्चे बच्चे की जुबान पर यह शेर रहे हैं। अगर मुझे ठीक से याद है तो 11-12 साल पहले बशीर बद्र ने एक मुशायरे में बताया था कि यह जो कोई हाथ भी ना मिलाएगा वाला शेर है, इसे मिस यूनिवर्स का खिताब जीतने से पहले सुष्मिता सेन ने मंच पर सुनाया था। मुझे पहले से यह शेर याद था, लेकिन जब बशीर ने यह बात बताई, तब तो यह और खास लगने लगा। आप भी पढि़ए यह गजल.... अच्छी लगेगी
यूं ही बेसबब ना फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी ना मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज़ का शहर है, ज़रा फा़सले से मिला करो
अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हे जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो
मुझे इश्तिहार सी लगती हैं, ये मुहब्बतों की कहानियां
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो
कभी हुस्न-ए-पर्दा नशीं भी हो, ज़रा आशिकाना लिबास में
जो मैं बन संवर के कहीं चलूं, मेरे साथ तुम भी चला करो
ये ख़िज़ां की ज़र्द शाम में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो
नहीं बेहिज़ाब वो चांद सा, कि नज़र का कोई असर नहीं
उसे तुम यूं गर्मी-ए-शौक से, बड़ी देर तक ना तका करो
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