Sunday, March 14, 2010

सब ठीक है


कि‍सी से मि‍लते वक्त ज्यादातर हम सभी सबसे पहले पूछते हैं ...और क्या हाल है? और लगभग हर बार जवाब होता है ...बढ़ि‍या। बढ़ि‍या ना हो तो भी जवाब यही होता है। आप भी जानते हैं क्यों। कई बार नहीं भी जानते कि‍ क्यों सब ठीक ना होते हुए भी हम कह देते हैं कि‍ सब ठीक है। ऐसे में मुझे नि‍धीश त्यागी जी की यह कवि‍ता अक्सर याद आती है। मुझे लगता है कि‍ यह हम सबसे जुड़ती है। उन्हें जब ऑफि‍स में देखा करता था तो कतई नहीं लगता था कि‍ वे ऐसी कवि‍ताएं भी लि‍खते होंगे। बहुत सख़्त दि‍खते थे। फिर 12 अप्रैल 2007 को बीबीसी पर छपी उनकी यह कवि‍ता पढ़ी तो उनके अंदर बैठे कवि‍ से मिलने का मौका मि‍ला। आज जब लंबे समय बाद उनसे बात हो रही थी, तो वे कह रहे थे, "कवि‍ता गौरैया की तरह होती है। वह ख़ुद आपके पास आती है, आप उसे बुला नहीं सकते। ......कवि‍ता आपको उस वि‍षय से आजाद कर देती है। अंदर कुछ अटका होता है जो बाहर आ जाता है। " उनकी यह कवि‍ता अक्सर मेरे जेहन में तैरती है। ख़ासतौर से तब, जब मैं कहता हूं, "...बढ़ि‍या... बहुत बढ़ि‍या।"
गि‍रीश ने एक इलस्ट्रेशन बनाया है। त्यागी जी और गि‍रीश दोनों के आभार के साथ यह आपको पढ़वा रहा हूं।


क़ि‍ताब का पन्ना थोड़ा पीला पड़ गया है
थोड़ा और कुम्हला गए हैं सूरजमुखी
थोड़ी लम्बी कतार है एटीएम पर
थोड़ी कम हरी है बगीचे की दूब
थोड़ा ज्यादा झड़ गए हैं पेड़ों से पत्ते
थोड़ी मुश्किल से आ रहे हैं हलक तक शब्द
थोड़ी देर से डूब रहा है सूरज
थोड़ा ज्यादा ठहर रहा है लाइट्स पर ट्रैफिक
थोड़ा रास्ता बदल लि‍या है चांदनी ने
थोड़ा झूठ बोलना पड़ रहा है कि‍ सब ठीक है।

3 comments:

Unknown said...

ultimate dear... tyagi sir ke saath to maine bhi kaam kiya hai par unke is chahre se main bhi aaj ru-b-ru ho raha hun... gud yaar.. keep going....

Pooja Prasad said...

इतनी खूबसूरत पंक्तियां पढ़वाने के लिए शुक्रिया। सख्त चेहरों के पीछे की मुलायमियत बड़े सुंदर अंदाज में सामने आई है।

Unknown said...

Bahut khub...........Jindgi ko chhuti hui kavita.........
Great selection Lalit........carry on