Wednesday, February 13, 2013

हंसते हुए लड़के की तस्वीर


कहते हैं स्मृतियों की उम्र होती है। वक्त के साथ-साथ पहले वे धुंधली पड़ती हैं, फिर और धुंधली और फिर मिट सी जाती हैं। मिट सी इसलिए कह रहा हूं क्योंकि बाबा सिग्मंड फ्रायड कहते थे कि वे हमारे अनकॉन्शस माइंड में हमेशा के लिए कैद होती हैं। हमारे मर जाने के बाद भी। कई बार सपनों में आ जाती हैं। अगले पिछले जन्म की उनकी थ्योरी को बेतुका या बकवास कहने का अभी मेरा मन नहीं हैं, आपको कहना हो तो कह लीजिए। मेरा मन तो धुंधली हो रही स्मृतियों को शब्दों के रंग देकर थोड़ा चटक करने का है। हो सकता है ऐसा करने से धुंधली होने का उनका प्रोसेस शायद थोड़ा धीमा हो जाए और इन शब्दों के रंगों को देख-देख लगने लगे कि यह तस्वीर पुरानी नहीं पड़ेगी। पता नहीं सच में पुरानी नहीं पड़ेगी या मेरी खुशफहमी है, पर करके देखने में क्या जाता है। यह कविता स्मृतियों के साथ इसी खिलवाड़ का नतीजा है जो कल ही इस शक्ल में सामने आई है। कविताएं तो और भी लिखी हैं पर इससे अलग तरह का अपनापन महसूस हुआ है। आपसे शेयर कर रहा हूं... इसी बहाने अपनी स्मृतियों को टटोलना चाहें तो टटोल लीजिए :

सपने में एक रास्ता जाना पहचाना नजर आया
टेढ़ी मेढ़ी गलियों के बीचों बीच बेतरतीब बहती काली गंदी नालियां
कई साल से गड़े खूंटों पर बंधी गोबर से सनी भैंसें और उनकी कटिया
आवारा बीमार आलसी कुत्तों की पूंछ खींचते नंगे पुंगे बच्चों का शोर
कपड़े धोने वाली थापी और प्लास्टिक की बॉल से क्रिकेट खेलते किशोर
उधड़ी हुई ईंटों वाली गलियों में सब्जी बेचते चेहरे में छिपी उदासियां
घरों के बाहर सीढ़ी पर बैठी बूढ़ी चाचियां, ताइयां और मासियां
और फिर नजर आया
चर्र की आवाज से खुलने वाला घिसी हुई चौखट से लटका हुआ किवाड़
टूटी हुई अंगीठी पर कालिख से मोटा हो चुका पानी गर्म करने का भगोना
पुराने कपड़ों को गूंथ कर बनी रस्सी पर सूखता गीला तौलिया और बनियान
दीवार पर ढिठाई से गढ़ी कील पर लटकती कचरी की सूखी माला
टूटे हुए शीशे के टुकड़े, खाली कांच की बोतलें और एक टूटा हुआ मग
सब के सब कुछ जाने पहचाने से
जाना पहचाना सा ही था कड़ी वाली छत पर टूटी खिड़की वाला चौबारा
और चौबारे में रखी पुरानी सीनरियां, कांसे की टोकनी और टूटा टेबल लैंप
वहीं रखे हुए थे हाथ से लिखे नोट्स के जिरोक्स, फटे हुए रजिस्टर और उदास किताबें
रसोई में रखी रहने वाली जाली जिसमें मां नमक मिर्च की शीशियां रखती थीं
और इससे पहले कि कुछ और नजर आता नजर आ गई एक तस्वीर
मकड़ी के जालों में छिपी कन्वोकेशन गाउन वाले हंसते हुए लड़के की तस्वीर
आखिरी दिन कॉलेज ग्राउंड की रेत पर बड़े चाव से खिंचवाई थी
पर अब अकेली है बाकी धूल में सनी पुरानी ग्रुप फोटुओं के साथ
हंसता हुआ चेहरा भर था इसमें, पर हंसती नजर नहीं आ रही थी
पता नहीं क्यों
घर पर घर बदल जाते हैं दौड़ती भागती जिंदगी में
पर घर नहीं बदलता,
और
ना ही बदलती हैं उसे छोड़ जाने की मजबूरियां।

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