खामोशी की भी अपनी ज़ुबां होती है, मतलब होते हैं, असर होता है, उम्र होती है। जरूरी नहीं शब्दों का होना, हर ज़ज्बात की तस्वीर बनाने के लिए। खामोशी की अपनी अदा होती है। उदास लम्हों को बेपरवाही से थपथपाते हुए यह उसे एक शक्ल दे देती है। फिर उसके चेहरे पर एक कहानी लिख देती है। फिर उसकी आंख में नमी और फिर ...। खामोश झील की उदासी तोडऩे के लिए जरूरी नहीं, पत्थर ही उछाला जाए। उसके कंधे पर हाथ धर दीजिए। हौले से। बस। वह खुद-ब-खुद बोल उठेगी। हां, खामोशी खुद-ब-खुद बोल उठेगी। उसकी अपनी ज़ुबां होती है।
1 comment:
मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं...कुछ ऐसी ही है तुम्हारी ये खामोशी जिससे तुम बातें करते हो।
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