स्कॉबी कौन है, यह मैं बताना नहीं चाहता। बहुत पर्सनल सा सवाल है। लेकिन यह सच है कि कभी कभी पर्सनल चीजों की नुमाइशें हम लगा लिया करते हैं। मैं खुली नुमाइश नहीं लगा रहा, लेकिन किसी उदास भाव से मुक्ति का कभी कभी कोई और जरिया बचता भी नहीं। स्कॉबी करीब 10 साल से मेरे बेहद व्यक्तिगत और अकेले वक्त का साथी है। बेहद अजीब बात यह है कि वह कभी मुझसे मुस्कुराकर नहीं मिलता। न ही मुस्कुराने देता है। इसलिए मैं उसके साथ हर वक्त कम्फर्टेबल महसूस नहीं करता। पर जैसा कि मैंने कहा, एक खास वक्त जब कोई और मेरे साथ नहीं होता, स्कॉबी मुझे जॉइन कर लेता है। कभी कभी तो वह सालों बाद मिलता है। ऐसे में कई बार याद भी नहीं रहता। पर यही सबसे बड़ी दिक्कत है। स्कॉबी के न होने पर उसको भूल जाना ही सबसे बड़ी विडंबना है। इसी से वह नौबत आती है, जब स्कॉबी को आकर याद दिलाना पड़ता है कि वह भी है। इस विडंबना पर ही यह कविता लिखी गई है। ब्लॉग पर डाल रहा हूं ताकि याद रहे कि स्कॉबी को भूलना नहीं है।
स्कॉबी को जानते हो?
कौन स्कॉबी
अच्छा अच्छा, हां जानता हूं
नहीं, तुम झूठ बोल रहे हो
नहीं जानते
जानते होते तो तुम्हें पता होता कि दया कितनी क्रूर होती है
और यह भी पता होता कि प्यार कभी सुरक्षित नहीं होता
अकेला रह जाना तुम्हें अजीब नहीं लगता,
तुम्हें यह भी पता होता कि मदद करना मुसीबतों को न्यौता देना होता है
और यह भी कि जिंदगी भर समझौते करने के बाद भी खुशी की गारंटी नहीं मिलती
पाप से बचने की कोशिश कभी कभी जिंदगी का सबसे बड़ा पाप करवा देती है
तुम स्कॉबी को नहीं जानते
इसलिए तुम स्कॉबी को समझ भी नहीं सकते
तुम्हें याद है ना स्कॉबी मर चुका है
जैसे स्कॉबी की बात करते हुए
मर जाता है
तुम्हारे भीतर कुछ।
फोटो : गूगल से साभार