Monday, August 19, 2013

अमृता का नॉवल पढऩे के बाद......




कुरुक्षेत्र में था। प्रो. कथूरिया वेस्ट लैंड पढ़ाने आए थे। तब अंग्रेजी डिपार्टमेंट के हेड थे। यूं पढ़ाया था कि लगा ईलियट का वेस्ट लैंड भी मेरा वेस्ट लैंड ही है। एक घंटे की क्लास थी। इस एक घंटे में न जाने कितने वेस्ट लैंड तब मेरे बैंच पर मेरे साथ बैठे थे। मुझे डिस्टर्ब नहीं कर रहे थे, लेकिन मैं समझ गया था कि अब नहीं क्लास के बाद डिस्टर्ब करेंगे। क्लास के बाद एक एक कर ये वेस्ट लैंड किसी जहरीली बेल की तरह मेरे हाथ, पांव, सीने, सिर से लिपटने लगे। घबराकर प्रो. कथूरिया के पास गया उनके ऑफिस में। सोचा वेस्ट लैंड के एक्सपर्ट हैं, इनसे बचना भी सिखाएंगे। बातों बातों में उन्होंने कहा... हर किसी का अपना कुरुक्षेत्र होता है। मेरा भी है। तुम्हारा भी। उम्र भर यह कुरुक्षेत्र हमारे भीतर रहेगा। लडऩा तो पड़ेगा ही। लड़ते रहना सीख लेना चाहिए।


8-9 साल हो गए उन बातों को। अब कुरुक्षेत्र की आदत पड़ चुकी है। फिर भी कभी कभी इस कुरुक्षेत्र में अभिमन्यु सा अकेला रह जाने का अहसास हो ही जाता है। कभी कभी। अक्सर नहीं। दो-तीन दिन पहले अमृता प्रीतम का नॉवल कोरे कागज पढ़ते वक्त यह अहसास लौटा था। कुछ जलते हुए अक्षर अक्सर पढऩे वाले का मन सुलगा देते हैं। अमृता के ही शब्द हैं... कागज को शाप है कि वह नहीं जलता। नहीं तो न जाने कितनी किताबें अपने आप सुलग जातीं। खैर, इस कुरुक्षेत्र से निकलने के लिए अक्सर मैं अक्षरों को हथियार बनाने की कोशिश करता हूं। तब भी यही किया। मेरी लिखीं ये लाइनें अब आपके लिए....

कभी कभी कुछ ऐसा कहने का मन करता है, जो शब्दों से नहीं कहा जा सकता।
कभी कभी यूं चुप रहने का मन करता है, जैसा खामोशी से नहीं रहा जा सकता।
चुपचाप कुछ कहकर अंदर उठते शोर को शांत करके देखो, बड़ा मजा आएगा।
बेमतलब बातों के जंगल में सन्नाटे के साथ सैर करके देखो, बड़ा मजा आएगा।
कुछ कहना, ना कहना
चुप रहना, ना रहना
कभी कभी सब बेमानी है
जिंदगी पांव में धूप लपेटे अंधेरे की कहानी है




पेंटिंग गूगल से साभार