बशीर बद्र की एक गज़ल दो तीन दिन पहले ध्यान आई थी। कुछ ऐसा हुआ था कि इसका शे,र बार-बार जेहन में कौंध रहा था। शे,र कुछ इस तरह है... अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आएगा कोई जाएगा, तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो। - शायद ही कोई हो, जिसे किसी ने या जिसने किसी को भुलाया न हो। चाहे चाहकर या ना चाहकर। वैसे भी यह जाहिर सी बात है कि जिंदगी की राह में लोगों के आने-जाने का सिलसिला बदस्तूर जारी रहता है... कभी रुकता नहीं। लेकिन जब किसी का जाना चुभने लगता है, तो ये बातें अतार्किक लगने लगती हैं। तब यह समझ नहीं आता कि कैसे कोई आकर चला गया। तब तो सवाल ही सवाल घेरे रहते हैं कि किसी को आना था तो गया क्यूं या किसी को जाना था तो आया क्यूं। खैर, आपके या मेरे सोचने से कुछ होना नहीं है। जिसने आना होता है, वो आता है और जिसे जाना होता है वो चला जाता है। आपके मुखातिब वह गज़ल है, जिसके कुछ शे,र विश्वप्रसिद्ध हैं।
यूं ही बेसबब ना फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी ना मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज़ का शहर है, ज़रा फा़सले से मिला करो
अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हे जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो
मुझे इश्तिहार सी लगती हैं, ये मुहब्बतों की कहानियां
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो
कभी हुस्न-ए-पर्दा नशीं भी हो, ज़रा आशिकाना लिबास में
जो मैं बन संवर के कहीं चलूं, मेरे साथ तुम भी चला करो
ये ख़िज़ां की ज़र्द शाम में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो
नहीं बेहिज़ाब वो चांद सा, कि नज़र का कोई असर नहीं
उसे तुम यूं गर्मी-ए-शौक से, बड़ी देर तक ना तका करो