Thursday, March 3, 2011

लड़की

पांच महीने से ज्यादा हो गए इस बार ब्लॉग पर आए। मैं खुद हैरान हूं। इस बात से नहीं कि इतना टाइम हो गया उस ब्लॉग पर लिखे, जिसे मैंने अपने आप से बातचीत का आइना समझकर शुरू किया था। ज्यादा हैरानी इस बात से है कि एक ही ढर्रे पर कैसे इतने वक्त तक चला जा सकता है! एक जैसी दिनचर्या, मगर अपने लिए वक्त नहीं! खैर, आज अचानक ख्याल आया कि ब्लॉग तो देख लूं। तभी पद्म सिंह के दो कमेंट्स भी नज़र आए। निदा फाज़ली की एक नज़्म ‘फूल जब खिल के बहक जाता है’ के बारे में उन्होंने अपनी जिन भावनाओं का इज़हार किया, वह दिल को छू गईं। किसी नज़्म की किसी के जीवन में ऐसी भी कद्र होती है, इसे मैं समझ सकता हूं। बस, पढ़ते-पढ़ते लगा कि आज कुछ शेयर किया जाए। तभी वह बुक हाथ आ गई, जिसका जिक्र मैंने पद्म के कमेंट के रिप्लाई में किया है। इसमें एक नज्म है ‘सोने से पहले’। मुझे बहुत अच्छी लगती है। निदा ने इसमें ‘हर लड़की’ के बारे में लिखा है। पता नहीं कौन इसे कितना समझता होगा, लेकिन अक्सर मुझे लगता है कि इच्छाओं का दबाना और समझौतों को इज्जत देने की मुद्रा में उनके आगे नत मस्तक हो जाना ज्यादातर लड़कियों का स्वभाव बन जाता है। यह उनकी मजबूरी होती है या कुछ और मुझे नहीं पता, लेकिन सोचता हूं इच्छाओं को दबाने से ज्यादा तकलीफदेय क्या होता होगा? बेशक वक्त बदल रहा है। लड़कियों के लिए भी। लेकिन कुछ चीजें अब भी नहीं बदलीं, और समझौतों से लड़कियों को जोड़ा जाना उन्हीं में से है। समझौते करते बेशक लड़के भी हों, पर कुछ मामलों में वे उतने नहीं लगते जितने लड़कियों को करने पड़ते रहे हैं.... खैर, आप यह नज़्म पढि़ए


हर लड़की के
तकिये के नीचे
तेज़ ब्लेड
गोंद की शीशी
और कुछ तस्वीरें होती हैं
सोने से पहले
वो कई तस्वीरों की तराश-खऱाश से
एक तस्वीर बनाती है
किसी की आंखें किसी के चेहरे पर लगाती है
किसी के जिस्म पर किसी का चेहरा सजाती है
और जब इस खेल से ऊब जाती है
तो किसी भी गोश्त-पोश्त के आदमी के साथ
लिपट कर सो जाती है


फोटो- गूगल से साभार